पीड़ाओं को लिए शब्द लिखते समय 

एक हूक सी उठती है दिल में

जिसे मैं कभी लिख नहीं सकती 

सच तो ये है ना पीड़ाएं लिखी जा सकी

ना लिखा जा सका किसी का 

बिछ़डता प्रेम

बहुत ढूंढने पे भी वो शब्द ही

नहीं मिले 

जो भर कर पर्याय बन सके 



मापने को‌ तो बहुत कुछ मापा गया 

धरती, ब्रह्मांड,आयु ,हवा पानी

ये तक की हृदय छोटा या है

बड़ा,लेकिन कभी कोई न 

माप सका

दुख में आंसूओं के बहते

धाराओं के गति को 

जिसे ईश्वर ने लिखा होगा 

खुशी के आंसूओं के हिस्से 



कहने के लिए कहीं गये 

अंसख्यो स्तोत्र ,मंत्र,छंद और दोहे

पर नही गढ़े जा सके 

निराशा के अधेरे में स्नान 

करते मन के नाम 

एक भी प्रेमिल- साहसिक शब्द 

जो उगा सके एक उम्मीद का नवप्रभात 


इस तरह 

दुख अकेला सफर करता रहा

प्रेम भी दो लोगों के मध्य होकर एकल रहा

साहसी भी हर युद्ध अकेले ही 

तो जीता

शायद ये तमाम दुनिया

असंख्य घटनाओं व आस पास घिरे

अनगिनत लोगों के मध्य

स्वयं से बस स्वंय तक का

 अनंत सफर कर रहा.......




©- अवनि(श्री)