जो पीड़ा नहीं जानते ,वो आस्था नहीं जानते
जो भावनाएं नहीं जीते,वो जीवन नहीं जानते
जो है मन से मजबूत ,वो निराशा व अंधेरा नहीं जानते
जो रहे घर के सुरक्षित घेरे में,वो शहरों में भटकना नहीं जानते
जो अपने से ऊपर न उठे,वो दूसरों का दुख न जान सके
जो अहं से भरे रहे सर से पांव ,वो ईश्वर के सामने झूकना नहीं जानते
जो दुनिया में गलतियों पर सराहे गये,वो जीवन में स्वपरिवर्तन न जान सके
जैसा कि ईश्वर अन्यायी नहीं होता ,वो देकर सब कुछ से वंचित हैं कर देता
और अंततः जिसने जीवन को जितना गहरा देखा
उनकी पीड़ाएं उतनी गहरी होती चली गयी
पीड़ाओं के साथ साथ ही प्रार्थनाएं भी मुक्ति की
जो जितना रमते गये उस अमूर्तकार में ये दुनिया उनसे उतनी ही छूटती गयी
अंततः गर्भ में की गयी नवजात शिशु की वो प्रार्थना पूर्ण हो जाती
कि मुझे इस अंधकार के अंधेपन से मुक्ति दो
©-श्रीऋ(अवनि)
Post a Comment