स्मृति

 कहते है स्मृतियो को

कभी मोक्ष नसीब नही होता...

वो रहती है हमेशा 

अतृप्त होकर

नही मिलता कोई 

तैरने की जमीन

का किनारा जहां वो ठहर 

सी जांए

फल्गु के बलुआ रेत पर वो 

उकेर दे खुद को 

जहां से उसे तार सके 

उसके अपने वशंज 


कभी-कभार वो लेकिन 

छाप छोड़ देती है देह पर 

चिन्हो के नाम से

सफेद तजुर्बे के रूप मे

मुंह पर काले धब्बे 

के निशान होके

न मिले अगर उन्हे भावनाओं का रूप....


कहते है अगर स्मृतियों को 

अगर समेट 

गठरी बांध छोड़ न आया जाय

गंगा घाट पर तो वो

लौट आती है भविष्य के

घटनाओ के अक्श मे 

जिसे मिटाना मुश्किल हो जाता है......


सच है कि, आज भी 

भटक रही स्मृतियां

एक मणिकर्णिका घाट के तलाश मे

जहां से वो मोक्ष पा सके........


--©भार्गवी