कैसे मेरा अस्तित्व तुमसे


 हे प्रिये!.....तुम पूछती हो

कैसे मेरा अस्तित्व तुमसे.....


लुप्त कंठ उच्चारित करते 

गान ध्वनि का सुर नभ से

नेत्र विस्मित देख मुख लावण्यता को

आत्मा की लालसाय तू चिरकामना तबसे.....


समाहित मेरे ह्रदय कोष्ठ द्वारों मे

हर श्वास तुम शुद्धता के भाव से

प्रेममेल धमनि संग शिराओ को

मेरे तन मे लाल शोणित प्रवाह तुमसे......


जीवन मरण के चक्र भाव के

सृजन प्रलय के व्यूह जबसे

मृत्यु विजय की कामना में अहमवृति

हे सृष्टि का मूलाधार तुमसे.....


हे प्रिये!तुम पूछती हो

कैसे मेरा अस्तित्व तुमसे......


©-श्रीऋ भार्गवी