छठ--हमार प्रकृति माई के पूजा(बिहार) ❤️

 


हेलो!"
"हां, बबुआ, कब आ रहे हो, प्लेन पकड़ लिए का। यहां केतना बजे तक आ जाओगे?  छोटका तुमको लेने जायेगा 
छठ माई के लिए एगो लाल-पियर साड़ी ले लेना आते समय ...
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" ऐ माई!
माई.. सुनो ना! 
 लागत है, आ नहीं पाएंगे इ बार भी काम का लोड बहुत है
ट्रैफिक मे है अभी, बाद मे बात करते हैं थोड़ा देर में.."
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कइसन अभागा है फिर जा नहीं पाएं, ऐसे ही होता है।
देह जियान हो गया काम करते करते.. लेकिन इगो छठ में भी पहुंच नहीं पाते है घर, माई के हाथ का ठेकुआ प्रसाद भी नही खा पाते ,माई केतना आश से कहती है आने को.. अगर हो सके त़ो आप घर जरूर जाये.. उ का है की छठी माई राह देख रहीं होंगी!


आस्था का गुरूत्वाकर्षण का खिंचाव बल अन्य सभी आकर्षणों से अधिक होता है।आस्था वो गुरूत्वाकर्षण बल है जो खींच लाती है हजारो मील दूरस्थ अपनों को मोहपाश मे बांध अपने माई बाबू के स्नेह छाया में....
छठ लोकास्था का पर्व अवश्य है लेकिन इस पर्व के आने का स्पर्श ,माई बाबू के आशीर्वाद सा होता है..
जैसे अम्मा मनौती मे छठ का उपवास करते हुए अपने लिए नही मांगती कुछ , वहां अम्मा बस माई नही रह जाती वो ठीक छठी माई लगती है ।जो अपने सुहाग, बाल बच्चों,नैहर , ससुराल के लिए मांग छठ मैया से हठ योग करती है "उसके बड़के बेटवा को सरकारी नौकरी मिल जाय तो वो चौबीसा कोशी भरेगी"...
ये सरलता है एक भावकेंद्रित पर्व जहां आत्मा प्रकृति (पंचभूत)को स्पर्श करती है।छठ अस्तित्व बोध का पर्व है जिसमे सूर्य,जल,प्रकृति की आराधना होती है, यहां बनावटीपन लुप्त हो जाता है!एक ऐसा पर्व जिसमे आज भी शुद्धता-पवित्रता तटस्थ विराजय है , कोई चाईनीज,रूसी,जापानी इसे स्पर्श नही कर  सका..
अरे भाई करे भी तो कैसे ??इतनी  श्रद्धा की अगर चिड़िया भी झुठा कर दें फिर से धो के सूखाना पड़ता है.. इ सब इतना पावन काम, दिमाग से समझाना और समझना दोनो ही आसान नही  ..इ सब बस अंदर का धक धक वाला फीलिंग है, जो यहां करेजा से फील होता  है........

ये प्रकृति(माई )मूल का उपासना पर्व है, जहां व्रती जब आपन मांग पियरका सेनूर भर अर्ध देती है ,तो लगता है साक्षात सूरूज देव उतर मांग के सुहाग मे बैठ गये...
चार दिवस नहा -खा,खरना और 36 घंटे का निर्जला उपवास तब सूर्य को संध्यावेला मे अर्ध , छठ ही ऐसा महापर्व है जिसमे डूबते सूर्य का वही सम्मान है जैसे उगते का।ये अध्यात्मिकता का भाव है जो दिखाता है कि जो डूबता है वही पार उतरता है ,वही शक्ति बन नभ पर तरता है।छठ स्त्रीत्व के उच्चतम भाव का बोध सूचकांक है जिसमे त्याग ,समर्पण ,उपासना,व्रत,नियम का समावेश है..
ये छठ जरुरी है उन बेटों के लिए जिनके घर आने का ये बहाना है | उस माँ के लिए जिन्हें अपनी संतान को देखे महीनों हो जाते हैं |
उस परिवार के लिये जो टुकड़ो में बंट गया है.. देखा देखी ,ताका ताकी नही है...
छठ उस परंपरा को ज़िंदा रखने के लिए समानता की वकालत करता है | जहाँ छोटका बड़का सब भूल के साथ एक माई को पूजते है। एक ही नदी में खड़े होकर ऊर्जा और सत्य के असीम स्रोत भगवान् सूर्य को मनाते है
सच्ची आस्था के अर्थ को समझाता है जहाँ भगवान् भी साक्षात दर्शन देते है इस व्रत मे सभी पांडित्य की उपाधि मे होते है कौनो पुरोहित की जरूरत नही...
 छठ जिंदा रखने का महापर्व है गागर निम्बू , नारियल और सुथनी जैसे फलों को सूप और दउरा बनाने वालो के हक दिलवाने के लिए ।छठ पर्व  उत्तर है अहं मे डुबे पुरुषों के लिए जो स्त्री को कमत्तर समझते है,समझाता है ये पर्व हम ऋणी है प्रकृति (स्त्री)के।छठ गीत को सुनकर त्याग,समर्पणका  पता चलता है जिसमे  स्त्री अपने मायके से ससुराल तक की सुख शांति के लिए छठ माता से प्रार्थना करती है...
"सभवा में बइठन के बेटा मांगिला, गोड़वा दबन के पतोह ये दीनानाथ, रूनकी झुनकी बेटी मांगिला पढ़ल पंडितवा दामाद ये दीनानाथ...ससुरा में मांगिला अनधन सोनवा नईहर में सहोदर जेठ भाई..."

छठ एक महापर्व नही, एक संपूर्णता व समानता है
एक गुरुत्वाकर्षण है जो सबको खींच प्रकृति से जोड़ देता है....❤️